वर्तमान मे अब परिस्थिति पहले जेसी नहीं रही,जहां सिर्फ degree हासिल करने से या फिर अच्छे मार्क्स से नोकरी मिलती थी।
विद्यार्थी के ऊपर सिर्फ बोझ बढ़ रहा है। उनमे कुछ नया सोचने की ,कुछ नया सीखने की इच्छा मर चुकी है । हमने ऐसा वातावरण निर्मित कर दिया है जहा विद्यार्थी को उसके marks के आधार पर आँका जाता है।
बाबा साहब आंबेडकर के अनुसार शिक्षण की परिभाषा :
बाबा साहब को प्रचलित शिक्षणनीति मे कोई रुचि नहीं थी। इस शिक्षण नीति मे वह कुछ परिवर्तन चाहते थे । वे शिक्षण का माध्यम मातृभाषा को बनाना चाहते थे।
बाबा साहब ऐसी शिक्षण नीति के समर्थक थे जिसमे अध्यापक केवल पुस्तकीय विद्वान न हो बल्कि स्पष्ट रूप मे उसका व्यक्तित्व हो।
शिक्षण नीति ऐसी होनी चाहिए जिससे students की रुचियों व संवेगों का पता लगाया जा सके , इस तरह से विद्यार्थी को अपनी दिशा निश्चित करने मे सरलता होगी।
“सिर्फ महेनत करना आवश्यक नहीं होता, जिस दिशा मे महेनत कर रहे हों उसका उचित होना अति आवश्यक है।
व्यक्ति का विद्यार्थी काल 16-21 साल उसके जीवन के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। यदि विद्यार्थी को इस काल में उचित लक्ष्य निर्धारित हो जाए तो
“Purpose to do work provides counter against Procrastination”
अब सभी विद्यार्थीओ को एक तराजू मे तोलना छोड़ना होगा, उन्हे अपने अंदर की खूबियों व कौशल्य से अवगत करना होगा।